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Monday 11 July 2016

काश तुम लौट आते




सुरीले वे अलफ़ाज़ कोई गीत न रच पाय
पन्नो पे भिखरी स्याही धूमिल सी हो गई
आँधियों ने ना जाने कितने बसेरे उजाड़े
लहरों के कितने थपेड़े चट्टानों ने सहे
सब खामोश चीत्कार करते रहे
बेजान सूखी सी लहरों से

काश तुम लौट के आ पाते
जहाँ से कभी कोई सन्देश ना आते
खामोश गलियारों में ना जाने
कहाँ गुम हो गए
एक झलक को भी हम तरसे जाते
काश तुम वहां से लौट के आ पाते

~ १२/०७/२०१६ ~

©Copyright Deeप्ती



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