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Thursday 1 January 2015

यादें


उस टूटे कुल्हड़ में चाय और बासी रोटी 
आम की डाल पर झूलती उसकी अल्हड़ चोटी 
मेहंदी की खुशबु से महकती हथेली गोरी 
माँ की वो मीठी सी लोरी 
कानो में गूंजती आज भी है

बरगद के नीचे वो दोस्तों की महफ़िल
सूखी रेत सी हाथ से गयी फिसल 
 बेफिक्र चहकते मस्ताते कदम 
बेख़ौफ़ खेलते दौड़ते हुए बेदम 
वो हसरतें आज भी मचल जाती हैं

टूटी पुलिया पर साईकल चलाना
मैदान में यूँ पतंग उड़ाना
पोखर में छलाँगें लगाना
रेतीली पहाड़ी पे लोटपोट होना
दिल में टीस आज भी छोड़ जाती हैं  

बाग में मस्त हो आम तोडना 
पंछी के साथ उड़ने को मचलना 
पाठशाला में इतराते बस्ता ले जाना 
पेड़ के नीचे गहरी नींद सो जाना 
उस ख्वाब में मुस्कराहट आज भी जीती है 

~ ०१/०१/२०१५~ 

Deeप्ती  (Copyright all rights reserved)

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